गर्भाधान संस्कार पूजा
गर्भाधान संस्कार हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से पहला संस्कार है। यह संस्कार गर्भधारण के समय संतान की स्वस्थता और उत्तम गुणों की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य स्त्री के गर्भ में शुद्ध और स्वस्थ संतान उत्पन्न करना है।
गर्भाधान संस्कार सनातन अथवा हिन्दू धर्म की संस्कृति संस्कारों पर ही आधारित है। हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव जीवन को पवित्र एवं मर्यादित बनाने के लिये संस्कारों का अविष्कार किया। धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी इन संस्कारों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है।
गर्भाधान संस्कार के लिए सबसे अच्छे समय
शास्त्रों के मुताबिक, गर्भाधान के लिए ऋतुकाल को सबसे अच्छा माना गया है. ऋतुकाल, रजो-दर्शन के 16 दिनों तक माना जाता है। इस दौरान, रजो-दर्शन के पहले चार-पांच दिनों और 11वें और 13वें दिन समागम नहीं करना चाहिए। गर्भाधान के लिए रात्रि का तीसरा प्रहर सबसे श्रेष्ठ माना गया है। गर्भाधान संस्कार के लिए, मलिन अवस्था, मासिक धर्म, ब्रह्म मुहूर्त, दिन का समय, और संध्या का समय अनुचित माना गया है। गर्भाधान संस्कार, पूर्णिमा, अमावस्या, अष्टमी, या चतुर्दशी के दिन नहीं करना चाहिए। गर्भाधान संस्कार के लिए, मंगलवार, शनिवार, और रविवार के दिन भी अनुचित माना गया है।गर्भाधान संस्कार के लिए, चतुर्थी, नवमी, और चतुर्दशी तिथि पर भी स्त्री-पुरुष को एक साथ नहीं आना चाहिए। गर्भाधान के लिए दक्षिण दिशा शुभ नहीं मानी गई है। गर्भाधान संस्कार के लिए, मृगशिरा, हस्त, अनुराधा, रोहिणी, स्वाती, श्रवण, धनिष्ठा, और शतभिषा नक्षत्र शुभ माने गए हैं।
गर्भाधान मंत्र:
1. ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः। सर्वे प्रजापते देवा गृहणन्तु हविर्मयम्।
संतानोत्पत्तये गर्भाधान कर्मणि मम शारिरमाह्वयिष्ये।
2. ॐ इमं पुत्रं सर्वैः संविदं यथा नीडं पतयन्ति पतत्रिणः।
एवं मा धत्तमेनसं पुत्रिणं गर्भं धीमहि सुमतिं भद्रवद्या।
इन मंत्रों का उच्चारण गर्भाधान के समय किया जाता है, ताकि माता-पिता को योग्य, स्वस्थ और धर्मनिष्ठ संतान प्राप्त हो। गर्भाधान संस्कार के साथ ये मंत्र गर्भाधान के पवित्र उद्देश्य को सशक्त बनाने का कार्य करते हैं।
गर्भाधान संस्कार के मुख्य महत्व:
1. धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण: हिंदू धर्म में गर्भाधान संस्कार का महत्व अत्यधिक माना गया है क्योंकि यह परिवार की अगली पीढ़ी के निर्माण से जुड़ा है। यह संस्कार संतान को पवित्र और धार्मिक दृष्टिकोण से जन्म देने के लिए किया जाता है। यह संतान के जन्म से पहले ही उसके जीवन को संस्कारित और अनुशासित करने का प्रथम कदम होता है।
2. संतान की शारीरिक और मानसिक उन्नति: गर्भाधान संस्कार का मुख्य उद्देश्य संतान को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ और शक्तिशाली बनाना है। संस्कार के दौरान किए गए वैदिक मंत्रों और यज्ञों से गर्भस्थ शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
3. संतान के उत्तम गुणों की प्राप्ति: गर्भाधान संस्कार के माध्यम से दंपति संतान में उत्तम गुणों और संस्कारों की प्राप्ति के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं। इससे यह माना जाता है कि संतान के अंदर ज्ञान, धैर्य, शील और सदाचार जैसे गुण विकसित होते हैं।
4. संस्कारित जीवन की शुरुआत: यह संस्कार जीवन की शुरुआत में ही दंपति को संयमित और संयत जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है। इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि माता-पिता की मानसिक और शारीरिक स्थिति संतान की उत्पत्ति के समय संतुलित और शुद्ध हो।
5. परिवार और समाज के लिए श्रेष्ठ संतति का निर्माण: गर्भाधान संस्कार का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि दंपति एक ऐसे शिशु का जन्म करें जो समाज और परिवार के लिए उपयोगी हो, धर्म और संस्कृति का पालन करे, और भविष्य में समाज की सेवा में समर्पित हो।
6. पारिवारिक और सामाजिक संतुलन: यह संस्कार परिवार और समाज में संतुलन और समृद्धि बनाए रखने में मदद करता है। संतान के जन्म से पहले यह सुनिश्चित किया जाता है कि माता-पिता मानसिक और आध्यात्मिक रूप से शुद्ध और संतुलित हों, ताकि वे अपने परिवार और समाज में सकारात्मक योगदान दे सकें।
7. विज्ञान और धर्म का संगम: गर्भाधान संस्कार में धर्म और विज्ञान का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। प्राचीन भारतीय विज्ञान के अनुसार, गर्भधारण के समय माता-पिता की मानसिक और शारीरिक स्थिति का सीधा प्रभाव संतान के विकास पर पड़ता है। इसलिए, इस संस्कार के माध्यम से माता-पिता को मानसिक शांति, शुद्धि और सद्गुणों की प्राप्ति के लिए प्रेरित किया जाता है।
8. संतान की शारीरिक और मानसिक दोषों से मुक्ति: यह संस्कार दंपति और संतान के भविष्य में आने वाली शारीरिक और मानसिक दोषों से मुक्ति दिलाने में सहायक माना जाता है। वैदिक मंत्रों और यज्ञों से संतान की कुंडली में दोषों को शांत करने का प्रयास किया जाता है, ताकि भविष्य में वह जीवन में सुख और सफलता प्राप्त कर सके।
9. संतान उत्पत्ति की शुद्धता और पवित्रता: गर्भाधान संस्कार संतान की उत्पत्ति को शुद्ध और पवित्र बनाता है। इसके द्वारा दंपति को संयम और मर्यादा में रहकर संतान उत्पत्ति की प्रक्रिया में शामिल होने की शिक्षा दी जाती है।