संतान सप्तमी व्रत 2024: शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और पौरोणिक कथा

संतान सप्तमी व्रत 2024: संतान की सुख-समृद्धि और लंबी आयु के लिए किया जाने वाला संतान सप्तमी व्रत इस साल 10 सितंबर 2024, मंगलवार को मनाया जाएगा। यह व्रत भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करके उनकी कृपा से संतान के लिए दीर्घायु और समृद्धि की कामना की जाती है।

संतान सप्तमी का महत्त्व

संतान सप्तमी व्रत का विशेष महत्त्व है, क्योंकि इस व्रत को रखने से संतान को लंबी आयु, सुख और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। यह व्रत माता-पिता द्वारा अपनी संतान की रक्षा और उनकी खुशहाली के लिए किया जाता है। साथ ही, निःसंतान दंपति भी इस व्रत को करके भगवान शिव और माता पार्वती से संतान प्राप्ति की कामना करते हैं।

संतान सप्तमी 2024: शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल संतान सप्तमी की तिथि 9 सितंबर 2024 की रात 9:53 बजे से शुरू होकर 10 सितंबर 2024 को रात 11:11 बजे समाप्त होगी। पूजा के लिए अभिजीत मुहूर्त, 10 सितंबर को 11:52 बजे से 12:42 बजे तक रहेगा, जो अत्यधिक शुभ माना गया है।

संतान सप्तमी व्रत: पूजन विधि

इस दिन सुबह स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा का संकल्प लें। पूजा में निम्नलिखित विधि अपनाई जा सकती है:

  1. शिव परिवार की मूर्ति स्थापित करें और उनके सामने नारियल और आम के पत्ते रखें।

  2. एक दीया जलाएं और तिलक के लिए हल्दी-कुमकुम, अक्षत, पान-सुपारी, और चंदन चढ़ाएं।

  3. भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें और सात पूड़ियां और खीर का भोग लगाएं।

  4. पूजा में कपूर जलाकर भगवान की आरती करें और संतान की लंबी उम्र और समृद्धि की प्रार्थना करें।

  5. पूजा के बाद भोग प्रसाद के रूप में सभी परिवार के सदस्यों में बांटें।

भोग रेसिपी: मीठी पूड़ी और खीर

इस दिन भगवान को सात मीठी पूड़ियां और खीर का भोग चढ़ाया जाता है। इसे बनाने के लिए:

  1. गेहूं के आटे में गुड़ या शक्कर मिलाकर आटा गूंथ लें।

  2. आटे की लोइयां बनाकर घी में पूड़ियां तल लें।

  3. खीर बनाने के लिए दूध, चावल और शक्कर का इस्तेमाल करें और इसमें इलायची और केसर डालें।

  4. इन पूड़ियों और खीर को भगवान शिव और माता पार्वती को अर्पित करें।

पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, संतान सप्तमी व्रत का विशेष महत्त्व है। एक कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को इस व्रत का महत्त्व समझाया था। उन्होंने बताया कि रिषि लोमश ने माता देवकी को संतान सप्तमी व्रत रखने का सुझाव दिया था, ताकि वे अपने खोए हुए सात बच्चों का दुःख दूर कर सकें। उस समय, कंस ने देवकी और वसुदेव को कैद में रखा था और देवकी के सात बच्चों को मार डाला था। लेकिन उनकी आठवीं संतान, भगवान कृष्ण, को कंस मार नहीं सका।

यह व्रत संतान की सुरक्षा और दीर्घायु के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। इस कथा के माध्यम से यह संदेश मिलता है कि संतान सप्तमी व्रत रखने से संतान पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं और उन्हें भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद मिलता है।

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