श्री रणकपुर मंदिर

श्री रणकपुर मंदिर

राजस्‍थान में स्थित रणकपुर जैन धर्म के पांच प्रमुख तीर्थस्‍थलों में से एक है। यह स्‍थान खूबसूरती से तराशे गए प्राचीन जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। इन मंदिरों का निर्माण 15 वीं शताब्‍दी में राणा कुंभा के शासनकाल में हुआ था। इन्‍हीं के नाम पर इस जगह का नाम रणकपुर पड़ा।

यहां के जैन मंदिर भारतीय स्‍थापत्‍य कला का अद्भुत नमूना है। केवल रणकपुर में ही नहीं बल्कि उसके आस पास की जगहों में भी अनेक प्राचीन मंदिर हैं। जैन धर्म के आस्‍था रखने वालों के साथ-साथ वास्‍तुशिल्‍प के दिलचस्‍पी रखने वालों को भी यह जगह बहुत भाती है।

मुख्‍य मंदिर प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित चौमुख मंदिर है। यह मंदिर चारों दिशाओं में खुलता है। संगमरमर से बने इस खूबसूरत मंदिर में 1444 खंबे लगे हैं। इनकी खासियत यह है कि ये सभी खंबे एक-दूसरे से भिन्‍न हैं। मंदिर के पास के गलियारे में बने मंडपों में सभी 24 तीर्थंकरों की तस्‍वारें उकेरी गई हैं।

सभी मंडपों में शिखर हैं और शिखर के ऊपर घंटी लगी है। हवा चलने पर इन घंटियों की आवाज पूरे मंदिर में गूंजती है।

मंदिर परिसर में नेमीनाथ और पारसनाथ को समर्पित दो मंदिर हैं जिनकी नक्‍काशी खजुराहो की याद दिलाती है। 8वीं शताब्‍दी में बने सूर्य मंदिर की दीवारों पर योद्धाओं और घोड़ों के चित्र उकेरे गए हैं। मुख्‍य मंदिर से लगभ्‍ाग 1 किमी. की दूरी पर अंबा माता मंदिर है।

इस मंदिर में 4 कलात्मक प्रवेश द्वार हैं। मंदिर के मुख्य गृह में तीर्थंकर आदिनाथ की संगमरमर से बनी 4 विशाल मूर्तियां हैं। करीब 72 इंच ऊंची ये मूतियां 4 अलग दिशाओं की ओर उन्मुख हैं। इसी कारण इसे 'चतुर्मुख मंदिर' कहा जाता है।
इसके अलावा मंदिर में 76 छोटे गुम्बदनुमा पवित्र स्थान, 4 बड़े प्रार्थना कक्ष तथा 4 बड़े पूजन स्थल हैं। ये मनुष्य को जीवन-मृत्यु की 84 योनियों से मुक्ति प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं।

इस मंदिर की इमारत लगभग 40,000 वर्गफीट में फैली है। आज से करीब 600 वर्ष पूर्व 1446 विक्रम संवत में इस मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ था, जो 50 वर्षों से अधिक समय तक चला। कहा जाता है कि उस समय में इसके निर्माण में करीब 99 लाख रुपए का खर्च आया था।

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