जितिया व्रत: संतानों की लंबी आयु के लिए माताओं का कठोर उपवास

जितिया व्रत जिसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है, भारत के बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में विशेष धार्मिक महत्व रखता है। इस व्रत को विशेष रूप से माताएं अपनी संतानों की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और समृद्ध जीवन की कामना के लिए करती हैं। यह व्रत पितृपक्ष के दौरान आश्विन मास में कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि से प्रारंभ होता है और अष्टमी तिथि पर पारण के साथ समाप्त होता है। इस साल जितिया व्रत 25 सितंबर को रखा जाएगा और पारण 26 सितंबर को होगा।

व्रत की विशेषताएँ

यह व्रत निर्जला (बिना पानी के) रखा जाता है, जो इसे अत्यंत कठोर और कठिन बनाता है। महिलाएं पूरे दिन बिना जल ग्रहण किए व्रत करती हैं और विधि-विधान से भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। जीमूतवाहन की कथा को सुनना और पढ़ना इस व्रत का अनिवार्य हिस्सा माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस कथा का श्रवण करने से संतानें दीर्घायु और राजा के समान सुख-समृद्धि से युक्त होती हैं।

जितिया व्रत की पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार नैमिषारण्य के ऋषियों ने सूतजी से पूछा कि कलिकाल में किस तरह से लोगों की संतानों की रक्षा की जा सकती है। सूतजी ने एक कथा सुनाई, जिसमें महाभारत युद्ध के बाद द्रौपदी ने अपने मृत पुत्रों के शोक में ब्राह्मण धौम्य से प्रश्न किया था। धौम्य ने उन्हें एक विशेष व्रत की विधि बताई जो सत्ययुग में राजा जीमूतवाहन ने किया था।

जीमूतवाहन एक परोपकारी राजा थे, जिन्होंने अपनी प्रजा की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान देने का संकल्प लिया था। राजा ने एक बार एक वृद्ध महिला के पुत्र को गरुड़ से बचाने के लिए अपना शरीर समर्पित कर दिया। राजा की इस दया और त्याग से प्रभावित होकर गरुड़ ने उन्हें वरदान दिया कि उनकी प्रजा के सभी मृत व्यक्ति जीवित हो जाएंगे और भविष्य में कोई भी बच्चा अकाल मृत्यु का शिकार नहीं होगा। इस दिन को विशेष महत्व देते हुए कहा गया कि जो महिलाएं अष्टमी तिथि को यह व्रत करेंगी, उनकी संतानें दीर्घायु होंगी।

व्रत की विधि

जितिया व्रत की पूजा विधि सरल होते हुए भी विशिष्ट होती है। इस दिन महिलाएं स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं और भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। पूजा के दौरान कुश से बने आकृति की पूजा की जाती है और जीमूतवाहन व्रत कथा का पाठ किया जाता है। व्रती महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं और अगले दिन नवमी तिथि पर व्रत का पारण करती हैं।

व्रत का महत्व

यह व्रत न केवल संतान की लंबी आयु के लिए किया जाता है, बल्कि यह माताओं के लिए आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति का स्रोत भी होता है। ऐसा माना जाता है कि जितिया व्रत रखने वाली स्त्रियों के जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है और उनके बच्चों का जीवन दीर्घकालिक एवं समृद्ध होता है।

निष्कर्ष

जितिया व्रत भारतीय परंपरा और धार्मिक आस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें माताओं का अपने बच्चों के प्रति असीम स्नेह और त्याग झलकता है। इस व्रत की कठोरता माताओं के धैर्य और समर्पण को दर्शाती है, जो संतान के सुखमय भविष्य के लिए की जाती है। जितिया व्रत की पौराणिक कथा और इसके पालन से मिलने वाले आशीर्वाद इस व्रत को एक अनूठी धार्मिक परंपरा बनाते हैं।

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