संकष्टी चतुर्थी व्रत भगवान गणेश को समर्पित एक प्रमुख व्रत है, जो मुख्य रूप से महाराष्ट्र और तमिलनाडु सहित पश्चिमी और दक्षिणी भारत में मनाया जाता है। इस दिन, भक्त भगवान गणेश की आराधना करते हैं और चंद्र दर्शन के बाद ही अपना व्रत तोड़ते हैं। माना जाता है कि इस व्रत को करने से जीवन की समस्याएं कम होती हैं और भगवान गणेश की कृपा से सभी विघ्न दूर हो जाते हैं।
व्रत की विधि:
उपवास: भक्त सुबह से लेकर रात तक उपवास रखते हैं, जिसमें पूर्ण उपवास या फलाहार का पालन किया जाता है।
पूजा: शाम को चंद्रमा के दर्शन के बाद भगवान गणेश की पूजा की जाती है। पूजा में भगवान गणेश की मूर्ति को दूर्वा घास और फूलों से सजाया जाता है, दीया जलाया जाता है, और प्रसाद के रूप में मोदक अर्पित किए जाते हैं।
अन्य अनुष्ठान: कई भक्त नंगे पैर मंदिर जाते हैं, मुद्गलपुराण का पाठ करते हैं, या गणेश जी के 100 नामों का जाप करते हैं।
संकष्टी चतुर्थी की कथा: संकष्टी चतुर्थी का महत्व भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को समझाया था। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन की सभी समस्याएं और संकट दूर हो जाते हैं, और उसके जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
संकष्टी चतुर्थी के महत्व के पीछे की कहानी: यह व्रत भविष्योत्तर पुराण और नरसिंह पुराण में भी वर्णित है, जिसमें भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को इस व्रत की महत्ता समझाई थी। इस व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन के सभी संकट समाप्त होते हैं और वह जीवन में उन्नति करता है।
संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश की कृपा पाने का एक अति उत्तम उपाय है और इसे पूरे विधि-विधान से करने पर जीवन में सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।