नवरात्रि 2024 के सातवें दिन, यानी महासप्तमी को मां कालरात्रि की पूजा का विशेष महत्व है। यह दिन माता दुर्गा के सातवें अवतार के रूप में मनाया जाता है, जिन्हें कालरात्रि या काली मां के नाम से भी जाना जाता है। उनका रूप विकराल और भयावह होता है, लेकिन वह सिर्फ दुष्टों का संहार करती हैं और अपने भक्तों को सुरक्षा और आशीर्वाद देती हैं।
मां कालरात्रि का रूप
मां कालरात्रि काले रंग में, बिखरे बालों के साथ और खड्ग तथा वज्र जैसी शक्तिशाली हथियारों के साथ विराजमान होती हैं। उनके गले में चमकती मुंडमाला होती है, और उनका वाहन गर्दभ (गधा) है। उनका रूप अंधकार और भय का प्रतीक है, लेकिन वह अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।
मां कालरात्रि की पूजा का महत्व
मां कालरात्रि की पूजा करने से जीवन में भय और संकट दूर होते हैं। इस दिन पूजा करने से साहस, आत्मविश्वास और विजय प्राप्त होती है। माता की कृपा से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं और शत्रुओं का नाश होता है। इस दिन पूजा करने से अकाल मृत्यु से भी रक्षा मिलती है।
पूजा विधि
- स्नान और सफाई: पूजा से पहले स्नान करके स्वच्छ हो जाएं।
- पूजा की तैयारी: चौकी पर मां कालरात्रि की तस्वीर रखें और उस पर काले रंग की चादर चढ़ाएं।
- अर्पण सामग्री: मां को रोली, अक्षत, दीप और धूप अर्पित करें।
- फूल चढ़ाना: रात रानी का फूल अर्पित करें, जो मां की पूजा में विशेष रूप से समर्पित किया जाता है।
- भोग: गुड़ और गुड़ से बनी चीजों का भोग अर्पित करें, क्योंकि माना जाता है कि क्रोधित मां को मीठा खिलाकर ही शांत किया जा सकता है।
- मंत्र जप और पाठ: दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करें और मंत्रों का जाप करें।
मां कालरात्रि का भोग
मां कालरात्रि को गुड़ का भोग अर्पित किया जाता है, क्योंकि यह स्वास्थ्य और धन की प्राप्ति का कारण माना जाता है। इसके अलावा, मालपुए भी भोग में शामिल किए जा सकते हैं।
विशेष रंग और वस्तुएं
सातवें नवरात्रि का रंग नीला है। इस दिन भक्तों को नीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए और पूजा में नीले फूलों का उपयोग करना चाहिए। मां कालरात्रि को गुलाब और हिबिस्कस के फूल पसंद हैं। पूजा में चमेली के तेल का दीपक जलाना शुभ माना जाता है, जो शांति और सुख की प्राप्ति में सहायक होता है।
कथा
रक्तबीज नामक राक्षस के उत्पात के कारण सभी देवी-देवता परेशान हो गए थे। भगवान शिव ने मां पार्वती से इस राक्षस के नाश की प्रार्थना की, जिसके बाद मां पार्वती ने अपने तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया और रक्तबीज का अंत किया। इस कथा से यह संदेश मिलता है कि मां कालरात्रि पापियों का संहार करके अच्छाई की रक्षा करती हैं।
इस दिन की पूजा से जीवन में सभी प्रकार के संकटों का नाश होता है और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।